महंगी दवाइयाँ मिलेंगी आधे से भी कम दाम में: जन औषधि सुगम मोबाइल एप से बचाएँ हजारों रुपए

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मेडिकल माफिया को रोकने के उपाय

दवाइयों के ऊंचे दाम और निजी कंपनियों की लूट से आम जनता बेहद परेशान है। एक निजी कंपनी की ₹218 की दवाई जन औषधि केंद्र पर केवल ₹36.10 में उपलब्ध है। इससे स्पष्ट होता है कि मेडिकल माफिया कितने बड़े मार्जिन के साथ काम कर रहा है। अंतर केवल ब्रांड का है, जबकि दवाई का असर एक जैसा होता है। इस निजी माफिया को रोकने के लिए कई सुझाव दिए जा रहे हैं।

सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की उपलब्धता

सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की कमी एक बड़ा मुद्दा है। डॉक्टर अक्सर मरीजों को निजी मेडिकल स्टोर से दवाइयाँ खरीदने की सलाह देते हैं, जिससे उन्हें कमीशन मिलता है। इस माफिया को रोकने के लिए सरकार को एक नोटिफिकेशन जारी करना चाहिए कि हर सरकारी संस्थान में दवाई के ब्रांड के नाम की जगह उसका साल्ट लिखा जाए और डॉक्टर हमेशा मरीज को जेनेरिक दवाई लिखें।

सरकारी अस्पतालों में दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित करना

राज्य सरकारों को केंद्र सरकार के साथ मिलकर प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र के मुख्यालय से सीधी दवाइयाँ मंगवानी चाहिए ताकि दवाइयाँ और भी कम दामों पर मिल सकें। इससे जरूरतमंद लोगों को निजी मेडिकल स्टोरों से महंगे दामों पर दवाइयाँ खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इससे सरकारी अस्पतालों में वही साल्ट की जेनेरिक दवाइयाँ 70% कम दामों पर मिल सकती हैं, जिससे आम लोगों की सेहत और जेब दोनों में सुधार होगा।

निजी माफिया पर नकेल

सरकार के खजाने में ज्यादा से ज्यादा पैसे आएंगे और देश मजबूत होगा। निजी माफिया पर नकेल कसने के लिए दवाइयों के साल्ट का नाम लिखने की शुरुआत की जा सकती है। लोगों को जेनेरिक दवाइयाँ खरीदने के लिए जन औषधि सुगम ऐप का उपयोग करने की अपील की जा रही है।

जन औषधि सुगम कैसे डाउनलोड करें

कोई भी व्यक्ति जिसके पास एंड्रॉइड फोन है, वह प्ले स्टोर में जाकर जन औषधि सुगम ऐप डाउनलोड कर सकता है। वहां व्यक्ति अपनी दवाई का साल्ट लिखकर देख सकता है कि उसे यह दवाई प्रधान मंत्री जन औषधि केंद्र में कितने रुपये की मिलेगी। ऐप में यह भी चेक कर सकते हैं कि आपके नजदीक कौन सा जन औषधि केंद्र है।

अमेरिका और कनाडा में जेनेरिक दवाओं का बोलबाला

अमेरिका और कनाडा जैसे विकसित देशों में भी जेनेरिक दवाइयां का काफी बोलबाला है । कनाडा में 10 में से 7 प्रिस्क्रिप्शन जेनेरिक दवाओं के लिए भरे जाते हैं। FNHA (First Nations Health Authority) सभी अन्य सार्वजनिक दवा कार्यक्रमों की तरह जेनेरिक और ब्रांड नाम की दवाओं का वही संयोजन कवर करता है।

इस प्रकार, यह संदेश दे रहा है कि जेनेरिक दवाएँ ब्रांडेड दवाओं की तरह ही प्रभावी और सुरक्षित हैं और उनकी गुणवत्ता में कोई अंतर नहीं है।

विधानसभा और लोकसभा में बिल पारित होना जरूरी

राज्य और केंद्र सरकार को अपने-अपने सदन में दवाइयों के मूल्य को लेकर सख्त फैसला लेना चाहिए ताकि इस बड़ी लूट को काबू में किया जा सके। इससे हर व्यक्ति, चाहे वह अमीर हो या गरीब, दवाइयों की कमी के कारण अपनी जान न गवाए।

समाज सेवियों की अपील

समाज सेवियों की मांग है कि सरकारी तंत्र को मजबूत किया जाए ताकि निजी मेडिकल माफिया के दाम कम हो सकें। यह भी कहा जा रहा है कि सरकारी अस्पतालों में दवाइयों के ब्रांड के नाम की जगह साल्ट लिखने का कानून बनाया जाए। इसके साथ ही, समाज को प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का अधिक से अधिक प्रचार करना चाहिए। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में राजनीतिक, सामाजिक, और धार्मिक संगठनों को इस योजना का प्रचार-प्रसार करना चाहिए ताकि कोई भी व्यक्ति दवाइयों की कमी के कारण अपनी जान न गंवाए।

हम अक्सर सोशल मीडिया पर देखते हैं कि लोग दवाइयों के लिए दर-दर भटकते हैं। जरूरतमंद लोग सामाजिक संगठनों से अपनी मदद की गुहार लगाते हैं। हमारा समाज तभी मजबूत होगा जब यह सभी माफिया खत्म होंगे। इसलिए हमें अपने सरकारी तंत्र को मजबूत करते हुए इस जन औषधि योजना का अधिक से अधिक प्रचार करना चाहिए, ताकि देश में किसी भी प्रकार की बीमारी हो, उसकी दवाई सरकारी केंद्रों से मिल सके।

वैसे तो हम लोग अक्सर ही अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों की बात करते हैं कि वहां पर सरकार बहुत अच्छी है और वहां इलाज बिल्कुल मुफ्त है। हमारे देश में भी यह तभी संभव है जब हम लोग अपने देश को मजबूत करेंगे और अपने सरकारी तंत्र को बढ़ावा देंगे। जब हम बदलेंगे तो समाज बदलेगा और जब समाज बदलेगा तो हालात बदलेंगे।

आखिर जनरिक दवाइयाँ सस्ती क्यों होती हैं ?

जनरिक दवाइयाँ ब्रांड-नेम दवाइयों के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। आइए जानते हैं कि ऐसा क्यों होता है:

  1. खोज और विकास खर्चे की कमी

ब्रांड-नेम दवाइयाँ : इन दवाइयों को विकसित करने में कंपनियों को बहुत पैसे और लंबा समय लगता है। इन्हें सुरक्षा और प्रभावशीलता सिद्ध करने के लिए विस्तृत शोध और परीक्षण करने पड़ते हैं।

जनरिक दवाइयाँ : जनरिक दवाइयाँ उसी फॉर्मूले का उपयोग करती हैं जो पहले से ही ब्रांड-नेम दवाइयों में इस्तेमाल हो चुका है। इन पर किसी नए शोध की जरूरत नहीं होती, जिससे ये ज्यादा सस्ती होती हैं। ये दवाइयाँ तब बनती हैं जब ब्रांड-नेम दवाइयों के पेटेंट की अवधि समाप्त हो जाती है

  1. मार्केटिंग और विज्ञापन खर्चे की कमी

ब्रांड-नेम दवाइयाँ : इन दवाइयों के प्रचार-प्रसार और विज्ञापन में काफी पैसे खर्च किए जाते हैं ताकि ये बाजार में सफल हो सकें।

जनरिक दवाइयाँ : जनरिक दवाइयों के लिए बड़े स्तर पर विज्ञापन की जरूरत नहीं होती, जिससे इनका मूल्य कम होता है।

  1. बढ़ता हुआ मुकाबला

पेटेंट की अवधि समाप्त होने के बाद, कई कंपनियाँ एक ही दवा का जनरिक संस्करण बनाना शुरू कर देती हैं। इससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ जाती है और कीमतें कम हो जाती हैं।

  1. आसान स्वीकृति प्रक्रिया

जनरिक दवाइयों को ब्रांड-नेम दवाइयों की तरह विस्तृत और महंगे परीक्षणों की आवश्यकता नहीं होती। इन्हें केवल बायोइक्विवेलेंस (Bioequivalence) सिद्ध करनी होती है, जिससे यह प्रमाणित होता है कि वे ब्रांड-नेम दवाइयों जितनी ही असरदार हैं। इससे इन्हें बाजार में जल्दी और कम खर्चे में लाया जा सकता है।

इन कारणों से जनरिक दवाइयाँ ब्रांड-नेम दवाइयों के मुकाबले अधिक सस्ती होती हैं और लोगों को वही गुणवत्ता और प्रभावशीलता प्रदान करती हैं।

जनरिक दवाइयों का ब्रांड-नेम दवाइयों के साथ समान कार्य करने का औचित्य

जनरिक दवाइयां वो दवाइयां हैं जिनके बारे में अक्सर ये सवाल उठता है कि क्या ये ब्रांड-नेम दवाइयों की तरह ही असरदार हैं। यहाँ यह समझना जरूरी है कि जनरिक दवाइयां ब्रांड-नेम दवाइयों का कम कीमत वाला विकल्प होती हैं, लेकिन इनके प्रभाव और कार्य करने के तरीके में कोई कमी नहीं होती। आइए इसे सरल शब्दों में समझें।

  1. सक्रिय सामग्री:
  • जनरिक और ब्रांड-नेम दवाइयों में वही सक्रिय सामग्री होती है। इसी कारण ये दोनों दवाइयां एक जैसी कार्यप्रणाली और असर दिखाती हैं।
  1. बायोइक्विवेलेंस (Bioequivalence):

जनरिक दवाइयां शरीर में उसी तरह से घुल-मिल जाती हैं जैसे ब्रांड-नेम दवाइयां। इन्हें एक जैसी दर और मात्रा में शरीर द्वारा अवशोषित किया जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि दोनों दवाइयां समान रूप से असरदार होती हैं।

  1. नियामक निगरानी (Regulatory Oversight) :
  • FDA (अमेरिका) या CDSCO (भारत) जैसी सरकारी एजेंसियां सुनिश्चित करती हैं कि जनरिक दवाइयां उच्च गुणवत्ता, सुरक्षा और प्रभावशीलता के मानकों पर खरी उतरें। इन्हें ताकत, शुद्धता और स्थिरता के मामले में ब्रांड-नेम दवाइयों जैसी गुणवत्ता रखनी होती है।
  1. रोगी के परिणाम : कई अध्ययनों ने दिखाया है कि जनरिक दवाइयां ब्रांड-नेम दवाइयों के समान असर दिखाती हैं। इसलिए डॉक्टर जनरिक दवाइयां लिखते हैं ताकि इलाज की लागत कम की जा सके, बिना इलाज की गुणवत्ता से समझौता किए।
  2. फार्माकोकिनेटिक्स और फार्माकोडायनामिक्स: जनरिक दवाइयों का असर और शरीर में उनका वितरण, मेटाबोलिज्म, और उत्सर्जन ब्रांड-नेम दवाइयों की तरह ही होता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि दोनों का प्रदर्शन समान है।

जनरिक दवाइयों को लेकर लोगो में चिंता

जनरिक दवाइयों की कीमत कम होने की वजह से कुछ लोग इन्हें कम प्रभावी मान सकते हैं। लेकिन यह धारणा अधिक है, वास्तविकता नहीं।

यदि किसी जनरिक दवा के साथ कोई समस्या आती है, तो इसे नियामक एजेंसियां देखती हैं और हल करती हैं। यह समस्या दवा के प्रकार में नहीं होती।

निष्कर्ष

जनरिक दवाइयां ब्रांड-नेम दवाइयों का एक किफायती विकल्प हैं। ये सुरक्षा, प्रभावशीलता, या गुणवत्ता के मामले में किसी तरह का समझौता नहीं करतीं। इनकी कम लागत का कारण है विकास और विपणन खर्चों में कमी और अधिक प्रतिस्पर्धा, न कि उनके प्रभाव में कोई अंतर। नियामक एजेंसियां यह सुनिश्चित करती हैं कि जनरिक दवाइयां ब्रांड-नेम दवाइयों की तरह ही कार्य करें, जो इन्हें हमारी स्वास्थ्य प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती हैं।

मेडिकल माफिया का प्रभाव और जन औषधि केंद्रों की आवश्यकता

देश में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्रों के खुलने से आम जनता को सस्ती और प्रभावी दवाइयां मिलने लगी हैं, जिससे मेडिकल माफिया का विरोध भी झेलना पड़ सकता है ये केंद्र लोगों को बाज़ार में उपलब्ध दवाइयों से काफी सस्ते विकल्प प्रदान करते हैं। यह एक महत्वपूर्ण पहल है जो स्वास्थ्य सेवा को सस्ती और सुलभ बनाने में मदद कर रही है।

जन औषधि केंद्रों के लाभ

जन औषधि केंद्रों के बढ़ते प्रचार के साथ, कई मरीज जो पहले महंगी ब्रांडेड दवाइयों पर निर्भर थे, अब समान रूप से प्रभावी जनरिक दवाइयों के लिए इन केंद्रों का रुख कर रहे हैं। ये केंद्र लोगों को बेहतर सेवा देने के साथ-साथ स्वास्थ्य बजट में भी काफी हद तक फायदेमंद साबित हो रहे हैं। जन औषधि केंद्रों का मुख्य उद्देश्य है कि सभी को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयाँ उपलब्ध कराई जाएं, ताकि कोई भी व्यक्ति पैसे की कमी के कारण स्वास्थ्य सेवा से वंचित न रहे।

मेडिकल माफिया का विरोध

हालांकि, मेडिकल माफिया, जो प्राइवेट ब्रांडों के बड़े मुनाफे पर निर्भर करते हैं, इन जनरिक दवा केंद्रों के खिलाफ राजनीति कर रहे हैं। कई बार इन माफियाओं की गतिविधियों के कारण ये केंद्र बंद हो जाते हैं या उन्हें लगातार धमकियाँ मिलती हैं। मेडिकल माफिया नहीं चाहता कि लोग सस्ती जनरिक दवाइयों की ओर बढ़ें, क्योंकि इससे उनके मुनाफे पर असर पड़ता है।

लोगों की जिम्मेदारी

इस स्थिति में जनता की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे इस सेवा का अधिक से अधिक लाभ उठाएं। उन्हें जन औषधि केंद्रों की मांग को बढ़ाना चाहिए और जनरिक दवाइयों की खरीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि इन केंद्रों की स्थिति मजबूत हो सके और मेडिकल माफिया की साजिशों को नाकाम किया जा सके। लोगों को अपनी स्वास्थ्य आवश्यकताओं के लिए जन औषधि केंद्रों पर भरोसा बढ़ाना चाहिए और जागरूकता फैलानी चाहिए।

सरकार की भूमिका

सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि जन औषधि केंद्रों को हर संभव समर्थन मिले और वे बिना किसी बाधा के सुचारू रूप से काम कर सकें। इसके लिए जरूरी है कि सरकार इन केंद्रों को बेहतर नीतियों और सुरक्षा उपायों से सुसज्जित करे। इसके अलावा, सरकार को लोगों को जन औषधि केंद्रों के लाभों के बारे में जागरूक करने के लिए अभियान चलाना चाहिए, ताकि अधिक से अधिक लोग इस सुविधा का लाभ उठा सकें।

निष्कर्ष

जन औषधि केंद्र न केवल स्वास्थ्य सेवाओं को सस्ता और सुलभ बनाते हैं, बल्कि मेडिकल माफिया के एकाधिकार को चुनौती भी देते हैं। यह समय है कि लोग और सरकार मिलकर इस पहल को सफल बनाएं, ताकि सभी को समान और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकें।

भारतीय नियामक मानक

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

भारत में दवाइयों की गुणवत्ता और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) दवाइयों के लिए राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण के रूप में कार्य करता है। CDSCO यह सुनिश्चित करता है कि दोनों, जनरिक और ब्रांडेड दवाइयां, समान सुरक्षा, प्रभावशीलता और गुणवत्ता के मानकों को पूरा करें।

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट और नियम

ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 और नियम 1945 के तहत, भारत में दवाइयों की स्वीकृति के लिए कानूनी ढांचा निर्धारित किया गया है। ये नियम यह सुनिश्चित करते हैं कि जनरिक दवाइयों में ब्रांडेड दवाइयों के समान सक्रिय सामग्री की मात्रा हो।

WHO-GMP अनुमोदन

WHO-GMP मानक

वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (WHO) के द्वारा निर्धारित गुड मैन्युफैक्चरिंग प्रैक्टिसेज (GMP) दिशानिर्देश दवाइयों की गुणवत्ता को सुनिश्चित करने के लिए विश्वव्यापी मानक हैं।

भारत में, जनरिक दवाइयों को WHO-GMP मानकों का पालन करना आवश्यक होता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ये सख्त गुणवत्ता नियंत्रण परिस्थितियों में निर्मित की गई हैं।

भारत में अनुपालन

भारत की कई फार्मास्यूटिकल कंपनियां WHO-GMP प्रमाणित हैं, जो उच्च-गुणवत्ता वाले मैन्युफैक्चरिंग मानकों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

जनरिक दवाइयों की प्रभावशीलता पर शोध

अनेक शोध और अध्ययनों से पता चला है कि जनरिक दवाइयां ब्रांडेड दवाइयों के समकक्ष हैं। भारतीय जर्नल ऑफ फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक अध्ययन ने यह पुष्टि की कि जनरिक कार्डियोवैस्कुलर दवाइयां अपने ब्रांडेड समकक्षों के समान प्रभावी हैं।

नीतिगत पहल

प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) जैसे सरकारी प्रयास जनरिक दवाइयों के उपयोग को बढ़ावा देते हैं, जिससे जनता को सस्ती और गुणवत्तापूर्ण दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही हैं।

दवाइयों की मियाद और गुणवत्ता

सरकार को यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि दवाइयों की मियाद सही हो और उनकी गुणवत्ता बरकरार रहे, ताकि किसी भी व्यक्ति को नुकसानदायक दवाइयों के प्रसार से बचाया जा सके।

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